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भारत पर मुगलों ने लगभग 350 साल हुकूमत की है, जिसमें सिर्फ दो बादशाह अकबर और औरंगज़ेब ने 101 साल हुकूमत की. अकबर का काल 1556-1606 था जब कि औरंगज़ेब का काल 1656-1707 था. मुग़ल काल में जिसे सबसे ज्यादा प्रसिद्धि मिली वो अकबर था. उसे अकबर महान और धर्मनिरपेक्ष शासक कहा जाता है जबकि औरंगज़ेब का चित्रण एक रुढ़िवादी, असहिष्णु और कट्टरवादी बादशाह के तौर पर किया गया है जबकि इतिहास इससे भिन्न है. इतिहासकारों ने भी औरंगज़ेब के साथ इंसाफ नही किया. एक बादशाह जिसने 50 साल तक हुकूमत की, क्या वो सही में जालिम, क्रूर बादशाह था. हम आपको ऐतिहासिक तथ्य के द्वारा बतायेंगे कि औरंगज़ेब अकबर से ज्यादा सेक्युलर और धर्मनिरपेक्ष था.
सबसे पहले हम औरंगज़ेब के चरित्र को देखते हैं. दुनिया का हर इतिहासकार चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम ये मानता है कि औरंगज़ेब बहुत ही सादा जीवन गुजारता था. ख़ज़ाने का पैसा अपने पर खर्च नहीं करता था. वो अपने हाथ से क़ुरान लिखता था और उसे बेच कर अपना अतिरिक्त खर्च उससे पूरा करता था. अगर चाहता तो वो भी विलासिता वाली जिंदगी गुजार सकता था. गद्दी पर बैठते ही उस ने दरबार से गायक, नर्तकियों, संगीतकारों को दरबार से निकाला. उसने सुबह-सुबह राजा के दर्शन और आशीर्वाद प्रथा को खत्म किया. दरबार के विलासिता खर्च में कमी की. औरंगज़ेब से पहले महल में हज़ारों दास, दासियां सेवा के लिये होती थीं औरंगज़ेब ने इसमें कमी की. औरंगज़ेब ख़ज़ाने को जनता की अमानत समझता था. उसने अपने पिता शाहजहां से भी कहा कि आप ने ख़ज़ाने के दुरुपयोग किया है जिसके लिये पूरी जिंदगी क़ैद मे काटनी पड़ेगी. जबकि अकबर ने विलासितापूर्ण तरीके से हुकूमत की और ख़ज़ाने का दुरुपयोग किया.
अकबर की इसलिए तारीफ की जाती है कि उसने एक नया धर्म दीन-ए-इलाही का आरंभ 1582 ई. में किया था. इस धर्म में हिन्दू, मुस्लिम, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई धर्म की मुख्य-मुख्य बातों का समावेश किया गया था. यद्यपि इसका मूल आधार एकेश्वरवाद था, परंतु बहुदेववाद की झलक भी इसमें थी. अकबर द्वारा जारी किये गये इस नये धर्म को सभी को मानना पड़ता था. दरबार में जितने भी सरदार, वज़ीर या मनसबदार सभी को धर्म अपनाना पड़ता था मतलब आपको अपना धर्म छोड़ पड़ेगा वरना दरबार में आप नहीं आ सकते थे. जबकि औरंगज़ेब के काल में ऐसा कोई बन्धन नही था, आप अपने धर्म पर चल सकते थे. आप को पूरी आजादी थी. अब आप खुद देखे के औरंगज़ेब सेक्युलर था या अकबर.
अब हम अकबर और औरंगज़ेब के दरबार का तुलना करते हैं. अकबर के दरबार में कुल हिन्दू सरदार या ओहदेदार 16% थे जबकि औरंगज़ेब के दरबार में इनका प्रतिशत 19% था. औरंगज़ेब के दरबार मे जसवंत सिंह और जया सिंह को प्रशासनिक तंत्र मे सब से उँचा मुकाम हासिल था. कुछ मुसलमान ओहदेदार ने इस का विरोध किया मगर बादशाह ने कहा कि नहीं इस पद के लिये ये सब से उपयुक्त उम्मीदवार हैं. शाहजहां के दरबार में मनसबदारों का प्रतिशत 24.5% था जबकि औरंगज़ेब के दौर में बढ़कर 33% हो गया था. हिन्दू इतिहासकर श्री शर्मा के अनुसार अकबर के दरबार में सिर्फ 14 हिन्दू मनसबदार थे जबकि औरंगज़ेब के दरबार में इन की सांख्या 148 तक पहुंचती है. औरंगज़ेब ने अपने फ़ौज में बहुत से हिंदुओं को सेनापति बनाया था जो फ़ौज का कमांड संभालते थे उनमें से कुछ नाम हैं जैसे भीम सिंह, इंद्रा सिंह, अच्छला जी, आरुजी और प्रेम दीवान सिंह. अगर औरंगज़ेब हिन्दुओं से शत्रुता रखता तो वो क्यों इनको उँचे पद पर नियुक्त करता खासतौर से फ़ौज में, उसे डर नहीं होता कि हिन्दू हमारे खिलाफ विद्रोह कर सकते हैं.
औरंगज़ेब को इतिहास में सबसे ज्यादा एक मंदिर विध्वंसक के रूप मे पेश किया गया है, जबकि हकीकत इससे उलट है. सोमेश्वर नत महादेव मंदिर-इलाहाबाद, जगनम बड़ी शिव मंदिर-बनारस, उनन्द मंदिर-गुवाहटी आदि मंदिरों के सहायता के दस्तावेज़ अभी तक मौजूद हैं. मंदिरों की रक्षा और दूसरे खर्चों के लिये अनुदान देने का सिलसिला औरंगज़ेब की हुकूमत में भी जारी रहा. औरंगज़ेब के समय के ऐसे बहुत दास्तवेज़ हैं जिनसे पता चलता है कि औरंगजेब ने इलाहाबाद, बनारस, उज्जैन, चित्रकूट के मंदिरो के अलावा और बहुत से मंदिरो को भी अनुदान दिया. आपको विशम्भरनाथ पांडे की किताब को देखना होगा जिसमें दस्तावेज़ की कॉपी भी मिलेगी. अगर आप चित्रकूट बालाघाट के दो मंदिर बाला जी और विष्णु मंदिर जायेंगे तो वहां अभी भी मंदिर में औरंगज़ेब द्वारा सहायता के उल्लेख का पत्थर लगा है. जहां तक मंदिर तोड़ने का इल्जाम है तो उस मंदिर को तोड़ा गया जहां पर हुकूमत के खिलाफ साजिश रची जाती थी या गलत काम होता था. उन मंदिरो को भी तोड़ा गया जहां दीवारों पर मैथुन करते मूर्तियां थी या पूरे मंदिर पर कामसूत्र की मूर्तियां बनी थी. आप आज भी खजुराहों के बहुत से मंदिर में अपने परिवार के साथ नहीं जा सकते.
औरंगज़ेब के ऊपर इल्जाम लगाया जाता है कि उसने जज़िया कर लगाया. आप को बताते चलें कि जज़िया औरंगज़ेब से पहले भी मुस्लिम बादशाहों ने लगाया. जज़िया के बारे में ऐसे हंगामा किया जाता है जैसे बहुत बड़ा कर था. जज़िया सिर्फ नौजवान को देना पड़ता था जो कमाने के लायक हो. जज़िया औरतों, बच्चों, बुढ्ढो पर नहीं लगता था. मगर ये नहीं बताया गया कि औरंगज़ेब ने और कुछ दूसरे कर माफ कर दिये थे.
अब आप स्वयं ऐतिहासिक तथ्य को देख कर फैसला करें कि औरंगज़ेब अकबर दोनों में कौन ज्यादा धर्मनिरपेक्ष था.
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